Rakesh rakesh

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लेखनी प्रतियोगिता -04-Feb-2023 तकदीर माता-पिता से

बालकिशन की आयु 2 वर्ष की थी, जब उसके पिता का एक लंबी बीमारी के बाद देहांत हो गया था। उसकी मां कुंती उसके पिता की मौत के बाद उसी वैध से शादी कर लेती है जिसने बाल किशन के पिता का इलाज किया था।


 पूरे गांव को शक था कि बाल किशन की मां ने वैध के साथ मिलकर इलाज के नाम पर जहरीली जड़ी बूटी  देकर अपने पति की हत्या की है। और पति का मकान जायदाद धोखे से अपने नाम लिख वाली है।

 5 वर्ष की आयु में बाल किशन अपनी मां और सौतेले पिता के साथ गंगासागर पर मकर सक्रांति का मेला देखने जाता है। मेले में उसकी मां उसके और अपनी बाजू पर कृष्ण भगवान का मोर पंख और बांसुरी का चिन्ह अंकित करवाती है। लेकिन बाल किशन के सौतेला पिता को पता था कि बाल किशन अपने पिता की धन संपत्ति का इकलौता वारिस है। इस नफरत की वजह से वह बालकिशन को मेले की भीड़ भाड़ में कहीं गुम कर देता है। बाल किशन की मां भी बाल किशन को ज्यादा ढूंढने की कोशिश नहीं करती है। और अपने नए पति के साथ अपने गांव वापस चली जाती है।

 सर्दियों का मौसम था इसलिए बालकिशन एक हलवाई की दुकान में उसकी कोयले की गरम भट्टी के पास भूखा प्यासा रात को  सो जाता है। सुबह हलवाई पास के पुलिस स्टेशन में बालकिशन की गुमशुदा की रिपोर्ट लिखवा देता है। कई महीनों तक जब बाल किशन के परिवार का पता नहीं चलता और ना ही कोई उसे ढूंढते हुए थाने में आता है तो हलवाई बाल किशन को दूसरे नौकरों के साथ अपनी हलवाई की दुकान पर रख लेता है।

 20 वर्ष की आयु तक बाल किशन का जीवन हलवाई की दुकान में शांति शकुन और खुशियों से कटता है, लेकिन वह अनपढ़ होने के साथ-साथ कद काठी में बहुत छोटा रह जाता है। इसलिए सब उसे नमूना कहकर पुकारते थे। हलवाई की मृत्यु के बाद उसके दोनों बेटे हलवाई की दुकान को बेच देते हैं। और जो नमूना ने हलवाई के पास बचत करके पैसे जमा किए थे वह भी उसे नहीं देते है।

 नमूना अपना पेट भरने के लिए अनाज मंडी कभी सब्जी मंडी में पल्लेदार का काम करता है। लेकिन कद छोटा होने की वजह से वह इतना भारी काम नहीं कर पाता है। कद छोटा  होने के कारण  उसे कोई काम भी नहीं देता है। उल्टा नमूना कहकर उसका मजाक उड़ाते हैं।

नमूना भूख से तड़प रहा था तभी उसे बहुत से जामुन के पेड़ दिखाई देते हैं। वह दो-तीन दिन तक जामुन खा कर अपना पेट भरता है। दो-तीन दिन बाद वहां कुछ बच्चे आते हैं कद छोटा होने की वजह से बच्चे नमूना से खूब हंसी मजाक करते हैं।

 नमूना वहां से दुखी होकर राधा कृष्ण के मंदिर पर जाकर भीख मांग कर अपना पेट भरने लगता है। एक दिन नमूना मंदिर की सीढ़ियों पर तेज बुखार से तड़प रहा था।  तो उसे बुखार से तड़पता देख एक वृद्ध उसे अपने साथ वृद्ध आश्रम ले जाता है। वृद्धाश्रम में नमूना को एक साथ बहुत सी वृद्ध मां और बहुत से वृद्ध पिता का प्यार मिलने के साथ-साथ वृद्ध आश्रम में उसे रोजगार भी मिल जाता है। क्योंकि वह हलवाई की दुकान पर काम करने की वजह से खाना बहुत स्वादिष्ट बनाता था।उसके बाजू पर मोर पंख और बांसुरी का चिन्ह देखकर सारे वृद्ध उसका नाम नंदलाल रखते हैं। नंदलाल के जीवन में दोबारा खुशियां आ जाती है।
 
एक दिन नंदलाल के सर में अचानक तेज दर्द होता है। अस्पताल का डॉक्टर सारी जांच करने के बाद वृद्धा आश्रम वालों को बताता हैं कि "नंदलाल को ब्रेन ट्यूमर है।" और डॉक्टर कहता है कि "नंदलाल का कैंसर लास्ट स्टेज पर है। नंदलाल का बचना नामुमकिन है।" पूरे वृद्धाश्रम में शोक का माहौल हो जाता है लेकिन नंदलाल को कोई भी उसकी बीमारी के विषय में नहीं बताता है।

 नंदलाल पहले जैसे ही सब की सेवा करता है और सब से प्यार करता है लेकिन अब बीच-बीच में उसे चक्कर आते थे और हर दूसरे तीसरे दिन उसका शरीर बुखार से तप ने लगता था। वृद्धा आश्रम में सारे वृद्ध थोड़े थोड़े पैसे जोड़कर उसे कैंसर के एक बड़े अस्पताल में भर्ती करवा देते हैं।

उन्हीं दिनों में एक बूढ़ी महिला को एक व्यक्ति वृद्ध  आश्रम में छोड़ कर भाग जाता है। एक दिन वह बूढ़ी महिला भी बाकी वृद्धाश्रम की महिलाओं के साथ नंदलाल का अस्पताल देखने जाती है। उस दिन अस्पताल में नंदलाल की ज्यादा हालत खराब हो जाती है। डॉक्टर जैसे ही नंदलाल के कुर्ते की बाजू ऊपर करके उसके बाजू में इंजेक्शन लगाता है, तो वह बूढ़ी महिला नंदलाल की बाजू पर मोर पंख और बांसुरी का चिन्ह देखकर अपनी बाजू का चिन्ह दिखा कर वहां तेज तेज रोने लगती है और रोते रोते कहती है "यह मेरा बेटा बालकिशन है यह गंगासागर पर मकर सक्रांति के मेले मे गुम हो गया था।" 

 और कहती है की "तेरे पिता की मृत्यु के बाद मैंने जिस आदमी से शादी की थी उसने सारी जमीन जायदाद अपने नाम करके कुछ महीनों बाद मुझे घर से निकाल दिया था। और उसी ने तुझे मेले में गुम कर दिया था।"

 उस समय तक नदाल को पता चल गया था कि मैं कैंसर की लास्ट स्टेज पर हूं और मैं ज्यादा दिन जिंदा नहीं रहूंगा। नंदलाल की मां उसे बालकिशन कहकर गले से लगा लेती है। बालकिशन कहता है "मैं बचपन से माता पिता के प्यार के लिए तड़पता रहा आज ईश्वर की कृपा से मेरे पास दुनिया के लोगों से ज्यादा माता पिता का सच्चा प्यार है। मुझे नहीं पता वह किस मिट्टी के लोग हैं जो अपने माता-पिता को घर से निकाल देते हैं। हां लेकिन माता-पिता की छोटी सी गलती बच्चे का पूरा जीवन बर्बाद कर देती है। फिर कहता है की आज मेरे पास माता पिता का आशीर्वाद प्यार सब कुछ है लेकिन जीवन नहीं है।" इतना कहने के बाद बालकिशन उर्फ नमूना उर्फ नंदलाल की मौत हो जाती है।

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9 Comments

अदिति झा

06-Feb-2023 12:20 PM

Nice 👍🏼

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👌👏🙏🏻

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Varsha_Upadhyay

05-Feb-2023 06:49 PM

👌👏🙏🏻

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